चौपाल में आज चौबे जी कुछ तल्ख मूड में है, कह रहे हैं कि "जांगड़ चौक वाला मंगरुआ नेता का हो गया, पेट्रोलियम मंत्री की तरह हरबखत गुमान में रहता है ससुरा । काल्ह पेट्रोल पंप पर मिल गया, कहने लगा कि ईमानदारी मा का रक्खा है चौबे जी, हमें देखो, हमरे पास का नाही है- मोटर है, बंगला है, गाड़ी है ......आपके पास का है चौबे जी ? हम्म भी ना आव देखे ना ताव सीना ठोक के कह दिया कि मंगरुआ हमरे पास मंहगाई रूपी महामाई है ।"

पूरा चौपाल ठहाकों में तब्दील हो गया । ठहाकों के बीच चौबे जी ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि "यू पी ए सरकार के असफल तीन साल पूरा भइला के बाद पेट्रोल के दाम साढ़े सात रूपल्ली बढ़ाके जनता जनार्दन के खूब बेहतरीन तोहफा दिहले ह हमरे मुंहचुप्पा प्रधानमंत्री । प्रधान मंत्री जी सोचले कि प्रकृति के बहुत दोहन होई गै। एक्के बार पेट्रोल के दाम हचक के बढ़ाई देयो, न रहेगा बांस न बजेगी ससुरी बांसुरी। अर्थशास्त्र के इहे नियम हs कि सामान मंहगा तो इस्तेमाल कम । जब लोग इस्तेमाल कम करिहें तो पेट्रोल के खर्चा अपने आपई कम होई जाई । बहुत दूर की सोच रखत हैं हमारे निहायत काबिल प्रधानमंत्री जी । हमरे समझ से उनके समझ पर अमेरिका मा रिसर्च होए के चाही राम भरोसे।"

इतना सुनते ही राम भरोसे से रहा नहीं गया। खैनी की थूंक पिच्च से फेंकते हुये बोला कि "सवाल लाख टके का ई है चौबे जी, कि तीन साल में प्रणब दा के मचरै मचर करै जुतवा के तल्ला घिसरा गए मगर पेट्रोल सौ रुपये लीटर नाही कर पाये। ई उनके काबिल फ़चाक व्यवस्था के नाकामी ना है तs का है महराज ?"

"नाकामी नाही तीन साल की उपलब्धि बोल राम भरोसे । कांग्रेस पार्टी कबहु नाकाम नाही हो सकत । काहे कि बज़ट के नाम पर जनता खातिर ई सरकार से जादा लुभावना जूता आजतक कवनों सरकार मा इस्तेमाल भए, नाही ना ? हमारी पार्टी के पास जनता के मुंह पर मारे खातिर एक से एक लुभावना जुत्ता है राम भरोसे। भले ही भीतर से समूचा तंत्र ससुरा हिलत नज़र आवत हो, मगर तल्ला के ऊपर चकाचक रहत हैं टांका। ना कोई वादीना प्रतिवादी। विकास के नाम पर ई पार्टी से जादा कवनों और कब्बो खेलत हैं का खुल्ला खेल फरुखावादी ? इहे तो है हमरी दिलफेंक ममतामई पार्टी की खासियत।" बोला गुलटेनवा।

"एकदम्म हंडरेड परसेंट सच्चाई है गुलटेनवा तोहरी बतकही मा  भाईमानो या न मानो मगर ईहे सच हैकि- बचपन मा जित्ता पईसा देके हमनी के दूध पियत रहनी हs स जवानी मा ओतना टैक्स देके हमनी के पानी पियत हईं जा। ऊ गुड से परहेज बताके गुलगुले खाएं,बजट मा कटौती लाके मंत्रिमंडल बढ़ाएँ और हमनी के कायदे से नोन-प्याज-रोटी भी नसीब ना होए। घोर कलिकाल आ गइल गुलटेनवा, घोर कलिकाल आ गइल ।" गजोधर ने कहा 

गजोधर की बातों से अवाक पान की गुलगुली दबाये रमजानी मियां ने अपनी दाढ़ी सहलाते हुए कहा कि " मियां, भाव हैं तो बढ़ेंगे ही । बढ़ना भी चाहिए । प्रोग्रेस हर चीजों में होनी चाहिए चाहे वह भाव ही क्यों न हो । पेट्रोल के भाव बढ़ेंगे तो आम आदमी का लाइफ स्टाइल बढ़ेगा। जब आम आदमी का लाइफ स्टाइल बढ़ेगा तो देश आत्म निर्भर होगा । यूं समझो बरखुरदार कि सरकार आम आदमी के सम्मान को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। मियां, दुष्यंत साहब ठीक ही कहते थे कि - आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख, घर अंधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख ।"

यह सब सुनके तिरजुगिया की माई से नहीं रहा गयातौआते हुए बोली कि " रमज़ानी मियांई देश की जनता वेबकूफ नाही है । हमनी के उपदेश सुनत हई जरूर टन भर । चौपाल मा उपदेश देत हईं जरूर मन भर लेकिन जब ग्रहण करे के बारी आवत हैं तो ग्रहण करत हई केवल कण भर । ईहे कण भर  ग्रहण  करे के नतीजा है यू. पी. का तख्तापलट। कुछ बुझाईल कि ना ?"

इतना सुनते ही चौबे जी सिरियस हो गए । कहे कि " आज़ादी के बाद समय बदलल--समाज बदलल। बदलि गए राजनीति का चोला भी । धानसेवा से जनसेवा के ढंग बदलि गए । ई अदला-बदलि मा सांसदी और विधायकी नौकरी की तरह बन गयी पोस्ट । जनता हो गयी गेस्ट, सांसद-विधायक होई गए होस्ट। अभी उनकी बारी है उनके खाये देयों । जवन दिन बी आर सी मिली सांसदी और विधायकी से पता चली उनके भी हचक के खाये के मजा । इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।  

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